आज़ाद परिंदा बनने का मज़ा
🐦.....
ही कुछ और है, अपनी शर्तों पे ज़िंदगी जीने का नशा ही कुछ कुछ और है,
वरना हकीकतें तो अक्सर रुला देती है,
ग़लतफहमी में जीने का मज़ा कुछ और ही है।
Comments
Post a Comment